अपना विषय मै स्वयं चुनूंगा

॥ ॐ वक्रतुण्डाय नमः ॥

अपना विषय मै स्वयं चुनूंगा ।

विनायकरजतभट्ट

सहाचार्य, चाणक्य विश्वविद्यालय

“मैं अपने भविष्य का निर्माता हूँ । मैं विश्वविद्यालय में अपनी इच्छा के अनुसार विषय का चयन कर सकता हूँ । मैं अपने अभीष्ट विषय के साथ साथ अपनें भविष्य के लिये अपेक्षित या अपने अभिभावकों कि इच्छा के अनुसार विषय का चयन कर सकता हूँ” । ये जो बात ऊपर कहे गयें हैं सुनने में अच्छे लगते हैं न? पर क्या यह सम्भव है । कुछ लोग अवश्य कहेंगे कि क्यों भाई सपने दिखा रहे हो । ऐसा भी कहीं होता है क्या?

अगर मै कहूँ की यह सम्भव है तो क्या आप मानेंगें? नही न? पर यह अब सम्भव है ।

उत्कृष्ट और उन्नत समाज कि ओर अग्रसर भारत न केवल तकनीकी क्षेत्र में या औद्योगिक क्षेत्र में आगे बढ रहा है अपितु विद्या के क्षेत्र में भी अपनी प्राचीन गरिमा को प्राप्त करने मे प्रयासरत है । विद्या के क्षेत्र में विश्वगुरु माना जाने वाला भारत कई कारणवश अपनी प्रतिष्ठा को खो चुका था । एक समय था जब विश्व के विभिन्न देशों से लोग आकर भारत में ज्ञान प्राप्त करते थे । उस समय छात्र सामन्यतः दो या दो से अधिक शास्त्रों में विद्या प्राप्त करते थे । ये मान्यता थी कि शास्त्र को वही ठीक तरह से जान सकता है या वही एक विषय में संशोधन कर सकता है जो दो या दो से अधिक शास्त्रों मे शिक्षित हो । शल्यचिकित्सा के जनक सुश्रुत ने इस बात को अपने एक श्लोक में स्पष्ट किया है –

एकं शास्त्रमधीयानो न विद्याच्छास्त्रनिश्चयम् ।

तस्माद्बहुश्रुतः शास्त्रं विजानीयाच्चिकित्सकः ॥

इसका अर्थ इस प्रकार है – एक ही शास्त्र या विषय का अध्ययन करने वाला व्यक्ति शास्र के निर्णय को नही समझ सकता इसलिये बहुत शास्त्रों को सुनने पढने वाला चिकित्सक, शास्त्र के तत्त्व को जान सकता है । यह केवल चिकित्सा क्षेत्र में लागू नही होता बल्कि हर क्षेत्र में उपादेय है । पर यह परम्परा धीरे धीरे समाप्त हो गयी । कारण कई हैं । उनकी चर्चा यहाँ नही करतें हैं । पर अब इस पद्धति की स्थापना पुनः विश्वविद्यालयों में हो रही है । क्रमशः भारत को उस ओर ले जाने के लिये समस्त देश जुट गया है । इसी उद्देश से भारत सरकार भी कई नयी नीतियों को व्यवहारपथ में ला रही है । इनमें राष्ट्रिय शिक्षा नीति (NEP) प्रधान है । शिक्षा नीति का प्रधान उद्देश प्राथमिक शिक्षा से लेकर उन्नत शिक्षा तक शिक्षा के साथ साथ व्यवसायिक प्रशिक्षण देना और हर एक छात्र को आत्मनिर्भर बनाना है । इस नीति मे विज्ञानादि नित्यनैम्मित्तिक और व्यवसायिक विषयों के साथ साथ भारत में जन्मे ज्ञानों के मिश्रण के बारे में विशेष ध्यान दिया गया है ।

बारहवीं की परीक्षायें समाप्त हो गयी हैं सभी छात्र उन्नत अध्ययन के लिये विश्वविद्यालय में प्रवेश पानें के लिये आतुर हैं । यही वह समय है जहाँ छात्र और अभिभावक उलझन मे हैं कि किस विषय में

स्नातक कि उपाधि हो । एक ओर भविष्य कि चिन्ता और दूसरी ओर आसक्ति का क्षेत्र । दोनों एक साथ प्राप्त हो यह सम्भवना न के बराबर दिखाई देता है । पर अब यह उलझन बहुशः हल कर दिया गया है राष्ट्रिय शिक्षा नीति के द्वारा । इस नीति ने विश्वविद्यालयीय छात्रों के लिये कई द्वार खोल दिये हैं । तीन साल पहले तक मनोविज्ञान का छात्र एककाल में सङ्गणकविज्ञान में उपाधि नही प्राप्त कर सकता था, चाहते हुए भी वह अपने अभीष्ट विषय में उन्नताध्ययन या वृत्ति के बारे में नही सोच सकता था पर अब भारत बदल रहा है । अब कई विश्वविद्यालय अपने नीति मे बदलाव लाते हुए राष्ट्रिय शिक्षा नीति का अवलम्बन कर रह है ।

इसका स्वरूप सङ्क्षेप में समझते हैं । राष्ट्रिय शिक्षा नीति के अनुसार स्नातक में प्रविष्ट छात्र दो विषयों में मुख्य रूप से स्नातक पदवी को प्राप्त कर सकता है या फिर एक विषय में स्नातक और अभीष्ट दो विषयों मे गौणपदवी भी प्राप्त कर सकता है या फिर एक विषय में स्नातक और अभीष्ट एक विषय मे गौणपदवी भी प्राप्त कर सकता है । उदाहरण के लिये – अगर एक छात्र भविष्य की दृष्टि से Commerce में स्नातक करना चाहता है परन्तु वह उसका ऐच्छिक विषय नही है तो वह प्रस्तुत नीति के अनुसार समान काल में उसी विश्वविद्यालय में अपने ऐच्छिक विषय में भी स्नातक पदवी प्राप्त कर सकता है । इसी प्रकार यदि वह दो से ज्यादा विषयों का अध्ययन करना चाहता है तो वह भी सम्भव है । है न मजेदार बात? अब छात्र स्वतन्त्र है । बन्धन से मुक्त है । अपनी इच्छा का स्वामी है । साथ हि अपने भविष्य का निर्माता है ।

जैसा कि ऊपर कहा है कि राष्ट्रिय शिक्षा नीति के अन्तर्गत विश्वविद्यालयीय पाठ्यक्रमों मे भारत में जन्मे ज्ञानों के मिश्रण के बारे में विशेष ध्यान दिया जा रहा है । इसी को Indian Knowledge Systems (IKS) या Knowledge of India आदि नामों से अङ्कित किया गया है । इस समय भारत मे हर कहीं IKS यह पद सुनाई दे रहा । कई विश्वविद्यालय, कलाशालायें भारतीय ज्ञान परम्परा के विषयों को अपने पाठ्यक्रम मे जोडने के बारे मे सोच भी कर रही है । विशेषतः अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (AICTE) भी जोर-शोर से इसके समन्वय के बारे विचार विमर्श कर रही है । सभी तकनीकी संस्थाओं में भारतीय ज्ञान परम्परा का सामान्य परिचय अनिवार्य करने पर ध्यान दे रही है । इस दिशा में भारत के किसी भी विश्वविद्यालय का छात्र यदि भारतीय ज्ञान परम्परा से सम्बन्धित किसी परियोजना पर काम करना चाहे तो वित्तीय सहायता के साथ साथ भारतीय ज्ञान परम्परा सम्बन्धित विषयों में पारङ्गत विद्वानों द्वारा मार्गदर्शन कि व्यवस्था भी कर रही है ।

इस नीति का अवलम्बन करनें में कई विश्वविद्यालय प्रयत्नरत है जिसमें सबसे आगे और कटिबद्ध है चाणक्य विश्वविद्यालय । इस विश्वविद्यालय की स्थापना प्रधानतः राष्ट्रिय शिक्षा नीति को ही मन में रखकर की गयी है । यहाँ के कुलाधिपति आचार्य एम्० के० श्रीधर जी राष्ट्रिय शिक्षा नीति के समिति में प्रधान सदस्य हैं । उनके मार्गदर्शन में स्थापित यह विश्वविद्यालय समाज, विज्ञान और तकनीक का एक अनूठा सङ्गम है । विश्वविद्यालय का उद्देश है भविष्य के नायकों का निर्माण और पोषण, एकविषयक अध्ययनपरम्परा से बाहर आना और, भारतीय ज्ञान का महत्त्व और उपयोग नित्य और व्यावहारिक जीवन में लाना ।

अब प्रश्न यह उठता है जब भारत में आठ सौ से भी अधिक विश्वविद्यालय पहले से हि स्थापित है और प्रसिद्ध है तो इस नये विश्वविद्यालय कि क्या आवश्यकता है? तो इसका उत्तर स्पष्ट है कि नया विश्वविद्यालय नये भारत के लिये, छात्रों को नये भविष्य के लिये तैयार करने के लिये और काल के अनुसार समाज में जीने कि कला सिखाने के लिये स्थापित किया गया है । यह केवल कुछ उदाहरण मात्र हैं, ऐसी ही कई और योजनायें हैं जो अद्वितीय और अनोखे हैं । पूरा भारत उसका काल काल में साक्षात्कार करते रहेगा ।

यह विश्वविद्यालय कर्नाटक के बेङ्गलूरु शहर से पैंतिस किलोमीटर दूर देवनहल्ली नामक एक निराले गाँव में, (जो कि बेङ्गलूरु विमानस्थानक के समीप है) एक सौ पच्चीस एक्कर भूमि में स्थापित हो रहा है । इस प्रान्त कि विशेषता है कि यह कर्नाटक के महान साहित्यकार दार्शनिक और राजनीतिज्ञ श्री डी वी गुण्डप्पा जी का जन्मस्थल है । एक भव्य विश्वविद्यालय जल्द हि वैश्विक चिन्तन का आधार बनता दिखायी देगा ।

तो अब तो आप मानतें हैं न कि छात्र अब स्वतन्त्र है अपने विषय के चयन में, आत्मनिर्भर बननें में सक्षम है । इस नीति के माध्यम से अध्ययन करने पर छात्र को भविष्य की चिन्ता नही रहेगी । व्यवसायिक, पाश्चात्य इत्यादि विद्याओं के साथ भारतीय ज्ञान को भी प्राप्त करेगा छात्र । छात्र का सर्वाङ्गीण विकास अब निश्चित है । देश उन्नति को ओर अग्रसर है ।